Vox Chronicles

भारत में हिन्दू होना अपराध क्यों बनता जा रहा है? – जब तक जड़ नहीं काटोगे, खून बहता रहेगा

लेखक: एक हिंदू अधिकारों के लिए संघर्षरत अधिवक्ता


पहलगाम का नरसंहार: एक और जिहादी हमला, एक और हिंदू कत्ल

कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया जिहादी हमले में 28 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई। उन्हें “काफ़िर” कहकर मारा गया — सिर्फ इसलिए कि वे मंदिर जा रहे थे। और सरकार? फिर वही रटा-रटाया बयान: “हम निंदा करते हैं, जांच चल रही है।”

पर सवाल ये है — क्या यह रोका जा सकता था?

हां — अगर सरकार बीमारी की जड़ पर वार करती। लेकिन आज भी सरकार सिर्फ बुखार के लक्षणों पर मरहम लगा रही है, वायरस की जड़ पर नहीं।


“जिहादी” कोई आतंकी नहीं, वह उस आदेश का पालनकर्ता है जो कुरान में लिखा गया है

कुरान में काफ़िरों के खिलाफ जो आदेश दिए गए हैं, वे किसी भी सभ्य समाज के लिए सीधी चुनौती हैं। भारत के मदरसों और मस्जिदों में इन्हीं आयतों को “धार्मिक आदेश” बताकर पढ़ाया जा रहा है — और यहीं से पैदा होते हैं जिहादी।

📖 सूरा तौबा (9:5):

“फिर जब हराम महीने बीत जाएँ, तो मुशरिकों को मार डालो जहाँ कहीं उन्हें पाओ…”

👉 हिंदू जैसे मूर्तिपूजकों को खत्म करने का सीधा आदेश।

📖 सूरा तौबा (9:29):

“लड़ो उनसे जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान नहीं लाते… जब तक वे ज़िल्लत के साथ जज़िया न देने लगें।”

👉 यानी जो मुस्लिम नहीं है — उनसे तब तक लड़ो जब तक वे नीचे झुक न जाएं।

📖 सूरा मुहम्मद (47:4):

“जब काफ़िरों से भिड़ो तो उनकी गर्दनें उड़ा दो…”

👉 यही वजह है कि आज भी जिहादी “गर्दन काटने” को धार्मिक पुण्य मानते हैं।


ये सिर्फ किताब में नहीं — भारत की गलियों में भी खुलेआम पढ़ाई जा रही है

इन आयतों को “धर्म का हिस्सा” कहकर प्रचारित किया जाता है। जब तक इन हिंसक विचारों को धार्मिक छूट मिलेगी — भारत के हर मंदिर, हर हिंदू खतरे में रहेगा।


कश्मीर से लेकर बंगाल, अजमेर से राजस्थान — हर जगह हिंदुओं पर टारगेटेड जिहाद


बिना लोकल मदद के जिहाद असंभव है

मुर्शिदाबाद हो या कश्मीर — हर बार किसी स्थानीय मुस्लिम ने:

यही ‘अपने’ पड़ोसी असली गद्दार हैं। इनकी मदद के बिना कोई हिन्दू मारा नहीं जा सकता था।


जब इस्लामिक देश मॉडरेशन की ओर, भारत के कन्वर्टेड मुसलमान ज्यादा कट्टर


अब न्याय नहीं, सीधी सज़ा — हर गद्दार को फांसी दो!

❗️क्योंकि जिनकी मदद से भारतीय मारे जाते हैं, वो भी हत्यारे हैं। ये भी हत्या में ‘साथी अपराधी’ हैं — इन पर भी वही सज़ा लागू होनी चाहिए: खुलेआम फांसी।


अगर न्यायपालिका रोकती है — तो जजों को घाटी भेजो

6 महीने बाद वो भी यही कहेंगे: “अब ढील नहीं, बस सीधी सज़ा।”


अब बस — हिंदू चुप नहीं रहेगा

यह धर्म की लड़ाई नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है। अगर आज नहीं उठे, तो कल आपके घर का नाम भी पहलगाम होगा।

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