8 अप्रैल 2025 को मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ शुरू हुई शांतिपूर्ण रैली अचानक हिंसा में तब्दील हो गई। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर बैरिकेड लगाकर टायर जलाए, पुलिस वाहनों पर पत्थर फेंके और तीन लोगों की जान चली गई। इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी गईं, लेकिन तब तक आक्रोश का तांडव थम नहीं पाया।
कानून-व्यवस्था की बिसात बिखरीः ममता सरकार की सुस्ती
जिला प्रशासन को हिंसा के पहले संकेत मिलने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जब मामला बिगड़ा, तब तक बीएसएफ को बुलाना पड़ा। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से उल्टी गिनती – “हम कानून नहीं मानेंगे” जैसी बयानबाज़ी- ने पुलिस को हिचकिचाहट में डाल दिया।
राजनीतिक तीर चलाए, शांति की ढाल नहीं बनाई
12 अप्रैल को ममता बनर्जी ने संसद द्वारा पारित अधिनियम लागू न करने की धमकी दे डाली और पूछा, “तो दंगा किस बात का?” इस बयान ने स्थिति और बिगाड़ दी। केंद्र और राज्य के बीच कानून की मान्यता पर उनका टकराव, आम जनता की सुरक्षा से बड़ा हो गया।
दागी गिरफ्तारी और बची लीक से बची बड़ी मछलियाँ
अदालत के निर्देश पर दर्जनों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन राजनीतिक कथित संचालक आज भी आजाद घूम रहे हैं। न बड़े आयोजकों पर शिकंजा, न किसी पर सीधी कार्रवाई- बस निचले स्तर के युवाओं को जेल की सलाखों के पीछे धकेला गया।
असली कीमतः मासूमों की ज़िंदगी और रोज़गार
तीन मृतक, दर्जनों घायल, दुकानदारों की दुकानों में तोड़फोड़ और किसानों की ऑनलाइन बाजार तक पहुँच में अवरुद्ध इंटरनेट- सबका खामियाज़ा गरीब जनता को भुगतना पड़ा।
अबकी बारः कार्रवाई चाहिए, सिर्फ बयान नहीं
1. पुलिस का पैंतरा दुरुस्त करें – हर भड़कते मामले में त्वरित हस्तक्षेप।
2. नेता पर भी हो शिकंजा सिर्फ हाथ आगे करने वालों को नहीं, बल्कि पीछे से खींचने वालों को भी सलाखों के पीछे देखें।
3. पारदर्शी जांच आर-पार की कार्रवाई, किसी भी जाति-धर्म से ऊपर।
4. समुदाय से संवाद – उकसाने वालों को रोकें, साथ बैठकर समाधान तलाशें।
ममता सरकार का वक्त आ गया है: पार्टियों की लड़ाई छोड़कर जनता की सुरक्षा की जंग लड़ें, नहीं तो मुर्शिदाबाद की राख से फिर कोई नई चिंगारी उठेगी।