एक संशोधित कानून, एक अफवाह, और फिर ऐसा विस्फोट कि पूरा मुर्शिदाबाद हिंसा की लपटों में घिर गया। वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर शुरू हुआ विरोध कब पुलिस पर पथराव, वाहनों में आगजनी, और रेलवे स्टेशन पर हमला बन गया — किसी को भनक तक नहीं लगी। अब जब तीन दिन बाद भी स्थिति पूरी तरह काबू में नहीं, तो यह सवाल उठ खड़ा हुआ है: क्या यह सिर्फ विरोध था, या इसके पीछे कुछ और है?
हिंसा की शुरुआत: एक मार्च, एक अफवाह, और फिर बवाल
8 अप्रैल को जंगीपुर में प्रदर्शनकारियों ने उमरपुर की ओर बढ़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 12 को जाम करने की कोशिश की। पुलिस की रोकटोक के बाद आगजनी और तोड़फोड़ शुरू हो गई। दो पुलिस वाहन जला दिए गए, और एक प्रदर्शनकारी के मारे जाने की अफवाह ने माहौल को पूरी तरह विस्फोटक बना दिया।
पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा। नौ लोग घायल हुए, जिनमें चार पुलिसकर्मी थे। सरकार ने इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई।
सूत्ती से निमतीता तक फैली आग
9 अप्रैल को सुत्ती में स्थिति और बिगड़ गई। सड़कें फिर जाम की गईं, पथराव और गिरफ्तारी का सिलसिला चला। लेकिन असली झटका तब लगा जब 11 अप्रैल को निमतीता में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेन पर पथराव, रेलवे स्टेशन में तोड़फोड़, और कई पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया।
जंगीपुर में एक पुलिस जीप, दर्जनों बाइकें, और यहां तक कि तृणमूल सांसद खलीलुर रहमान का कार्यालय भी निशाने पर आया। दो ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं और पांच को डायवर्ट करना पड़ा।
राज्यपाल ने खुद लिया मोर्चा
गवर्नर सीवी आनंद बोस ने घटनाक्रम पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “मैं हालात की लगातार निगरानी कर रहा हूं। जो उपद्रव फैला रहे हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” उनके बयान ने साफ कर दिया कि राज्य सरकार को अब सिर्फ प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक दबाव का भी सामना करना पड़ रहा है।
बीजेपी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हालात काबू में न रखने का आरोप लगाया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है।
क्या सिर्फ कानून का विरोध, या कुछ और?
वक्फ कानून में संशोधन को लेकर गुस्सा जरूर है, लेकिन जानकार मानते हैं कि सोशल मीडिया की अफवाहों, संगठित उकसावे, और स्थानीय राजनीति ने इस आग में घी डालने का काम किया।
अब जब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने की ओर है, तब भी धुएं के बादल, जले हुए वाहन, और रेलवे स्टेशन की टूटी दीवारें उन 72 घंटों की याद दिला रहे हैं, जब एक जिला जल उठा — और सवाल बाकी रह गया: क्या ये बस शुरुआत है?
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