उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के 2020 के आदेश के बावजूद आज भी कई पुलिस थानों में CCTV कैमरे या तो लगे ही नहीं हैं, या वे निष्क्रिय, खराब या सीमित कवरेज वाले हैं। इसी चिंताजनक स्थिति के खिलाफ आवाज़ उठाई है प्रतापगढ़ ज़िले के पटी ब्लॉक निवासी और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सत्यम सिंह ने, जो विभिन्न राज्यों में पशु अधिकारों और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
उन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में एक विस्तृत शिकायत दायर की, जिसे आयोग ने “प्रथम दृष्टया गंभीर” मानते हुए औपचारिक केस के रूप में पंजीकृत कर लिया है। यह इस बात का प्रमाण है कि यह सिर्फ एक सामान्य शिकायत नहीं, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़ा एक गंभीर मामला है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश, लेकिन पालन नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर 2020 को Paramvir Singh Saini बनाम Baljit Singh (SLP (Crl) No. 3543/2020) मामले में फैसला देते हुए देश भर के सभी थानों और जांच इकाइयों में CCTV कैमरे लगाने के स्पष्ट निर्देश दिए थे।
निर्देश के अनुसार:
- सभी पुलिस थानों में नाइट विज़न से युक्त CCTV कैमरे लगाए जाएं।
- कैमरों में ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा हो।
- रिकॉर्डिंग कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखी जाए।
- सभी कमरों, हॉल, लॉकअप, बरामदों और पूछताछ स्थलों को कवर किया जाए।
शिकायतकर्ता सत्यम सिंह का कहना:
“यह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं, बल्कि आम जनता के मूल अधिकारों का खुला हनन है। जब पुलिस स्टेशनों में ही पारदर्शिता नहीं होगी, तो आम नागरिक को न्याय कैसे मिलेगा?”
सत्यम सिंह ने बताया कि उन्होंने यह शिकायत कई उच्च अधिकारियों, उत्तर प्रदेश के डीजीपी, कानून मंत्री, मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी ईमेल के माध्यम से भेजी थी। अब जब राज्य मानवाधिकार आयोग ने इसे केस के रूप में दर्ज कर लिया है, तो वे इसे न्याय की ओर एक कदम मानते हैं।
CCTV न होने से हुए गंभीर मामले:
भारत में ऐसे कई घटनाएं हुई हैं जहाँ पुलिस स्टेशनों में CCTV न होने के कारण सच्चाई सामने नहीं आ पाई या न्याय में देर हुई।
1. सथानकुलम कस्टोडियल डेथ केस, तमिलनाडु (2020)
एक पिता-पुत्र (जे. फेनिक्स और जे. बेनिक्स) को पुलिस ने लॉकअप में बुरी तरह से पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई। यदि CCTV होता, तो सबूत स्पष्ट होते। इस मामले में NHRC और बाद में CBI ने हस्तक्षेप किया।
2. भदोही, उत्तर प्रदेश (2022)
एक युवती ने पुलिस स्टेशन में रेप का आरोप लगाया। मामले में CCTV रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं थी, जिससे साक्ष्य कमजोर पड़े। कोर्ट ने बाद में पुलिस विभाग को फटकार लगाई।
3. बक्सर, बिहार (2021)
थाने में एक युवक की संदिग्ध मौत हो गई। परिवार ने पुलिस टॉर्चर का आरोप लगाया, लेकिन CCTV फुटेज न होने से घटना का कोई सटीक प्रमाण नहीं मिला। NHRC ने डीएम व एसपी से जवाब मांगा।
इन मामलों से यह स्पष्ट होता है कि CCTV न होने पर न केवल न्याय बाधित होता है, बल्कि पीड़ितों को दोहरी पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
मानवाधिकार आयोग की भूमिका
मानवाधिकार आयोग के पास शिकायतों पर स्वतः संज्ञान लेने, रिपोर्ट तलब करने, संबंधित अधिकारियों को नोटिस भेजने और क्षतिपूर्ति की सिफारिश करने की शक्ति होती है। यदि आयोग चाहे तो राज्य सरकार को आदेश दे सकता है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप तत्काल CCTV व्यवस्था सुनिश्चित करे।
समाज पर प्रभाव:
- पुलिस की पारदर्शिता में वृद्धि: जब रिकॉर्डिंग होगी तो पुलिस कर्मी भी सावधानी से काम करेंगे।
- कस्टोडियल टॉर्चर में कमी: कैमरों की निगरानी में अमानवीय बर्ताव रुकेंगे।
- न्याय प्रणाली पर विश्वास: जब साक्ष्य मौजूद होंगे, तो न्याय की प्रक्रिया मजबूत होगी।
- लोकतांत्रिक मजबूती: जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन होगा, तभी लोकतंत्र की असली भावना जीवित रहेगी।
अंतिम संदेश:
सत्यम सिंह, जो कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले से हैं और कई राज्यों में सामाजिक कार्यों, विशेषकर पशु अधिकारों के लिए जाने जाते हैं, उनका यह कदम एक मिसाल है कि एक जागरूक नागरिक किस तरह सिस्टम को जवाबदेह बना सकता है।
“अगर हम चुप रहेंगे, तो अन्याय और बढ़ेगा। CCTV सिर्फ एक कैमरा नहीं, बल्कि जनता की आँख है — उसे अंधा रखना, लोकतंत्र को अंधा करने जैसा है।”
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